Wednesday, January 29, 2020
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
Monday, January 13, 2020
बड़ों का भाव
Tuesday, December 31, 2019
Saturday, October 12, 2019
Thursday, June 28, 2018
घर का भेद
(मन रुपी घर का भेद ही जीवन का महामंत्र है घर का भेद जैसा भी हो इसे छिपाने में ही खैर है)
'औरों के लिए रुपनाथ जैसे भी हों पर जानकीनाथ के लिए तो नेक ही थे।'तभी तो जानकी नाथ की उनसे थोड़ी सी दोस्ती क्या हो गई उन्होंने अपनी बेटी 'मंगली का विवाह उनके पुत्र दया राम से दी। उन्होंने अल्प दोस्ती के अंधत्व में लड़के के शील- स्वभाव को नहीं देखा इसी वजह से आज उन्हें बेटी की आंखों से गिरते आंसू देखने पड़ रहें हैं।सब उसी नज़र अंदाज़ का अंजाम है।
अब 'मंगली घर के बाहर बैठी है।वह बार- बार मुर्झित होकर एक चक्(भूल)याद करती वो 'घर का भेद...।वोह ! मैं अच्छा नहीं की जो ह्दय की कच्ची चिठ्ठी खोल दी।
हां ससुराल में जैसा भी साग -भात खाती तो खाती। नींद भर न सोती तो न सही। मुझे दुनियाभर का प्रेम न मिलता तो न सही ... मैं मुठ्ठी भर प्रेम में ही जी लेती किन्तु इस भेद को न खोलती कि मेरा पति व्यभिचारी है एक दुराचारी है।
घर के चार दीवारी के बाहर निकलते ही यह भेद चार दिन में चारों ओर मच गया। फिर किसी ने 'मंगली' को गलत ठहराया तो किसी ने दयाराम को, दयाराम तो गलत ठहराने के योग्य था ही, किन्तु मंगली नहीं... मंगली तो पाक थी गंगा सी।पर इस दुनिया को क्या कभी इधर तो कभी उधर होते रहती है पर क्या कभी पाला भी अग्निनि के समीप सकता है?नहीं ना
Wednesday, November 15, 2017
मानवता के 'डगर' पे
प्यारे तुम मुझे भी अपना लो।
गुमराह हूँ कोई राह बता दो।
यूँ ना छोड़ो एकाकी अभिमन्यु सा रण पे।
मुझे भी साथ ले चलो मानवता की डगर पे॥
वहाँ बड़े सतवादी है।
सत्य-अहिंसा के पुजारी हैं॥
वे रावण के अत्याचार को मिटा देते हैं।
हो गर हाहाकार तो सिमटा देते हैं॥
इस पथ में कोई ज़ंजीर नहीं
जो बाँधकर जकड़ सके।
पथ में कोई विध्न नहींं
जो रोककर अकड़ सके॥
है ऐ मानवता की डगर निराली।
जीत ले जो प्रेम वही खिलाड़ी॥
यहाँ मज़हब न भेदभाव,
सर्व धर्म समभाव से जिया है।
वक़्त आए तो हँस के ज़हर पीया करते हैं॥
फिर तो स्वर्ग यहीं है नर्क यहीं है।
मानव मानव ही है सोच का फ़र्क़ है॥
ओ प्यारे! इस राह से हम न हो किनारे . . .
न हताश हो न निराश हो।
मन में आस व विश्वास हो॥
फिर आओ जग में जीकर
जीवन-ज्योत जला दे।
सुख-शांति के नगर को स्वर्ग सा सजा दे॥
आज भी राम है कण-कण में
भारत-भारती के जन जन को बता दे॥
Tuesday, January 17, 2017
उठो युवा तुम उठो ऐसे. . .
शिवराज आनंद
नाम: शिवराज आनंद (मूल नाम: शिव कुमार साहू) जन्म स्थान: सोनपुर जन्म तिथि: 04 मई 1987 माता-पिता: विश्वनाथ और पार्वती धर्म पत्नी: कृष्णी कुमारी...
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बेवफा ! अपनों के लिए ... ओ ' धन्य ' जिसने आंख बन्द होते हुए भी दुनिया के हसीन नजारों को देख लिया था . सात सु...
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हम कलियुग के प्राणी हैं सतयुग, त्रेता न द्वापर के हम कलयुग के प्राणी हैं । हम सा प्राणी हैं किस युग में, हम अधमदेह धारी हैं।। हमारा युग तो...
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जीवन की सोच (हमें बाधाएं और कठिनाईयां कभी रोकती नहीं है अपितु मज़बूत बनाती हैं) लफ़्ज़ों से कैसे कहूं कि मेरे जीवन की सोच क्या...