Saturday, October 12, 2019

दबंग दुनिया समाचार पत्र का आभार






दबंग दुनिया समाचार पत्र के संवादाता का आभार की उन्होंने ने मुझे अपनी लोक प्रिय समाचार पत्र के प्रकाशन दिनांक 1 अक्टूबर 2019 में स्थान दिया. 

Thursday, June 28, 2018

घर का भेद

(मन रुपी घर का भेद ही जीवन का महामंत्र है घर का भेद जैसा भी हो इसे छिपाने में ही खैर है)
     'औरों के लिए रुपनाथ जैसे भी हों पर जानकीनाथ के लिए तो नेक ही थे।'तभी तो जानकी नाथ की उनसे थोड़ी सी दोस्ती क्या हो गई उन्होंने अपनी बेटी 'मंगली का विवाह उनके पुत्र दया राम से दी। उन्होंने अल्प दोस्ती के अंधत्व में लड़के के शील- स्वभाव को नहीं देखा इसी वजह से आज उन्हें बेटी की आंखों से गिरते आंसू देखने पड़ रहें हैं।सब उसी नज़र अंदाज़ का अंजाम है।
   अब 'मंगली घर के बाहर बैठी है।वह बार- बार मुर्झित होकर एक  चक्(भूल)याद करती वो 'घर का भेद...।वोह ! मैं अच्छा नहीं की जो ह्दय की कच्ची चिठ्ठी खोल दी।
        हां ससुराल में जैसा भी साग -भात खाती तो खाती। नींद भर न सोती तो न सही। मुझे दुनियाभर का प्रेम न मिलता तो न सही ... मैं मुठ्ठी भर प्रेम में ही जी लेती किन्तु इस भेद को न खोलती कि मेरा पति व्यभिचारी है एक दुराचारी है।
घर के चार दीवारी के बाहर निकलते ही यह भेद चार दिन में चारों ओर मच गया। फिर किसी ने 'मंगली' को गलत ठहराया तो किसी ने दयाराम को, दयाराम तो गलत  ठहराने के योग्य था ही, किन्तु मंगली नहीं... मंगली तो पाक थी गंगा सी।पर इस दुनिया को क्या कभी इधर तो कभी उधर होते रहती है पर क्या कभी पाला भी अग्निनि के समीप  सकता है?नहीं ना
     
    

Wednesday, November 15, 2017

मानवता के 'डगर' पे


प्यारे तुम मुझे भी अपना लो। 
गुमराह हूँ कोई राह बता दो। 
यूँ ना छोड़ो एकाकी अभिमन्यु सा रण पे। 
मुझे भी साथ ले चलो मानवता की डगर पे॥
 
वहाँ बड़े सतवादी है। 
सत्य-अहिंसा के पुजारी हैं॥
वे रावण के अत्याचार को मिटा देते हैं। 
हो गर हाहाकार तो सिमटा देते हैं॥
इस पथ में कोई ज़ंजीर नहीं
जो बाँधकर जकड़ सके। 
पथ में कोई विध्न नहींं
जो रोककर अकड़ सके॥
है ऐ मानवता की डगर निराली। 
जीत ले जो प्रेम वही खिलाड़ी॥
 
यहाँ मज़हब न भेदभाव, 
सर्व धर्म समभाव से जिया है। 
वक़्त आए तो हँस के ज़हर पीया करते हैं॥
फिर तो स्वर्ग यहीं है नर्क यहीं है। 
मानव मानव ही है सोच का फ़र्क़ है॥
ओ प्यारे! इस राह से हम न हो किनारे . . . 
न हताश हो न निराश हो। 
मन में आस व विश्वास हो॥
 
फिर आओ जग में जीकर
 जीवन-ज्योत जला दे। 
सुख-शांति के नगर को स्वर्ग सा सजा दे॥
आज भी राम है कण-कण में
भारत-भारती के जन जन को बता दे॥

Tuesday, January 17, 2017

उठो युवा तुम उठो ऐसे. . .


     

उठो युवा तुम उठो ऐसे 

उठो युवा तुम उठो ऐसे
चक्रवात में तूफां उठता है जैसे ।।
हां, अब कौन युवा,तुम्हारे सिवा?
रक्षक प्यारे देश का ।
तूं चाहते तो तांडव मचे,
देर है तेरे उस वेष का ।।
अब तो सब से आस भी टूटी ।
लगने लगी 'अब दुनिया भी झूठी ।।
कैसी जननी? कि कैसा लाल?
जो जनकर भी जना क्या लाल?
जो देश की गरिमा बचा सके ।
ध्वंस कर रावण - राज धरा से
एक आदर्श राम - राज्य बना सके ।।
तुम देश के आन हो ।
हिन्दू हो या मुसलमान हो ।
किसी मजहब के नहीं,
"तुम मातृभूमि के लाल हो "।।
तुम कालो के भी महाकाल हो
फिर क्यों अन्जान हो?
क्या नेता - मंत्रियों से परेशान हो?
ओह ! कही विलीन न हो मेरे सपनों का भारत !
हे महारथ! तुझमें है सामर्थ ...रोक दे ए अनर्थ ...।
अगर है मोहब्बत ...तो अपनी यौवन - शक्ति जगा दे ।
आज अपने युग। से भ्रष्टाचार मिटा दो।।







  

Wednesday, January 11, 2017

बेवफ़ा 'अपनों के लिए...

बेवफा ! अपनों के लिए ...
     ओ ' धन्य ' जिसने आंख बन्द होते हुए भी दुनिया के  हसीन  नजारों को  देख लिया था .
         सात  सुरों के  संगीत  को  अपने  सांसो  मे  बसा  लिया था पर उसके  असल जिंदगी का  अंजाम क्या  हुआ? जो  नम्रता  के  साथ  प्यार - वयार  के चक्कर में  था भूल गया था कि ऐसेे  रेत का महल  बनाने से  क्या फायदा  जो   खुद  -ब- खुद  टूट  के  बिखर  जाये .उसे एहसास  ही नही  था कि  एक दिन   नम्रता  उससे  दूर ...दूर  दुनिया  मे गुम  हो  जायेगी . आखिर  ऐसा  क्या  हुआ  उसके   साथ?
            हैलो,  नम्रता  कैसी हो ...?
                              धन्य  ने  तार के  सहारे  पुछा .पढाई  के  सिलसिले  मे  नम्रता  शहर  गयी  हुई  थी.
         मै  बिल्कुल  ठीक  हूं धन्य .मेरी पढाई जैसे  ही  पूरी  होगी  मै  तुुम्हारे पास आ जााऊंगी ...जवाब देती  हुई  नम्रता  बोली.
 'तो कब  आ रही हो नम्रता?   तुम बिन  मुझे कुछ भी  अच्छा नही लगता  ...धन्य  ने कहा.
      मैं क्या करुं धन्य ..तुमसे  दूर  तो जाना मै  भी  नही   चाहती  थी पर... नम्रता  बोली .
  मैं सच  कह  रहा हूं नम्रता  हर पल  हर घडी   मुझे  तेरी ही याद  आती है  और  मैं उन  यादों से बेहाल हो  जाता हूं.
  हां, नम्रता  तेरे जाने के बाद  मेरी  जिन्दगी वीरान  सी लगती है .एक पल भी  सुकून  नही  मिलता
...सिर्फ  और सिर्फ बेचैनी .कुछ ऐसे ही  बेताबी के आलम मे धन्य  ने कहा.
      बचपन  मे  दोनों  ही  एक साथ एक  ही स्कूल  में पढाई किये  थे तब से  दोनो  एक दुसरे  से प्यार करने   लगे.और धन्य  भी  नम्रता  को अपना  मानने लगा. धन्य  नम्रता  के बिना अपने आप को एकान्त  महसूस  करने  लगा .अब तुम आ भी  जाओ  नम्रता ...तेरे  आने से मेरे उजड़े जिन्दगी  मे फिर से  बहार   आ जायेगी.अब और मुझसे  रहा जाता...बेताबी  के आलम मे धन्य ने कहा .
           असल बात  धन्य  और नम्रता  कक्षा  6 वी से एक  ही विधालय मे पढते थे.दोनों की  गहरी दोस्ती  हो गई .  किसी  पार्टी  या  समारोह  में साथ -साथ  आने -जाने  लगे .जब ये सारी बात  नम्रता  के  पिता को  मालुम  हुआ  कि मेरी तीन -पांच मे आगे  है  अगर  उसे  दो -चार  लगा  दुंगा  तो कही नौ दो ग्यारह  ना हो जाए .इस  लिए  उन्होंने मतंग पुर के राज निहित  के लडके  से नम्रता  की शादी  तय कर दी . धन्य  नम्रता  को लेकर  न जाने कितने  सपने  संजोता . उन दोनो  का तार के  सहारे  ही  बात  होता था.फिरसे एक दिन  धन्य  तार के सहारे पुछा  कि जब तुम  मुझसे  इतना  बेइंतहा  प्यार  करती हो तो क्यों नही मेेेर  पास आ जाती ...और हमारे बीच  के  दूरि यो  को मिटा  देती. तुम  फिक्र  मत करो धन्य  मेरी पढाई जैसे ही पूरी होगी मै आजाऊॅगी. क्या  करुं  मुझे  भी  यहां एक पल अच्छा  नही लगता है  फिरभी  दिल के जख्मों  को  सी सी कर जी  रही हूं. नम्रता बोली .

         धन्य  ' अमीर  खान  की तरह  स्मार्ट  था. वह  हाथ मे चूड़ा और  टी- शर्ट आदि  पहनने का शौकीन  था . हर रोज सुबह     और शाम  आईने  के  साथ   काटता .एक दिन  हसी -खुशी  के  साथ  मस्त  माहौल  मे  बैैठकर  नम्रता  के साथ  गुजारे पलों  को याद  कर रहा था  कि वे भी कोई  दिन थे  जब  हम पहली बार किसी  पार्टी  मे मिले थे  लाल शूट पहने  मुझे  नम्रता भा गई थी .मुझे  ऐसा लग रहा था कि  मै ही  नम्रता  का  सच्चा  प्रेमी हूं. तभी  अचानक  फोन की घंटी बजी ...फोन  था  नम्रता  का.धन्य ने  फोन  उठाया  ..बोला  कैसे  नम्रता?  आ रही  हो न ?मै  बस तुम्हारा  ही इन्तजार  कर रहा हूं .क्या तुम  बिना बताए आकर के मुझे  सरप्राइज  देना चाहती हो ,  मै सब जानता हूं.धन्य और कुछ  कहता  इससे  पहले  की फोन कट चुकी थी फिर फोन  की घंटी  बजी ... इधर से धन्य  फोन  उठाते  ही पहले  जैसा  दुहराया ...बोला  -क्या हुआ  नम्रता  सब ठीक  तो है?  मगर  उधर से  जवाब  सुनते ही  धन्य सन्न रह गया वही  गिर पडा .   मानो उसके  चमकती  जिंदगी  मे अंधेरा छा  गया हो . ये तुने क्या  किया  नम्रता?  तुम  तो कहती थी हमारे  प्यार  के रंग  कभी नही  छुटेंगे...हमारे  रिश्ते  अटूट  है कभी  नही  टुटेंगे. क्या  तेरा ओ वादा ...ओ इरादा  सिर्फ  झूठे प्यार  का सौदा  था? ऐ दुनिया  वालो इस दुनिया  मे  अब  प्रेम ,प्रेम  नही  रहा  ...इक धोखा  बन गया है .जिसे अपना समझो वही  पराया हो जाता है .उन्होंने  तो  बङी  आसानी से कह दिया  ' आई हैट  यू '...  एक पल के लिए भी नही  सोचा  कि  हमारे   ऐसा  कहने से  उनके नाजुक  दिल पर  क्या  गुजरेगी? अब   हम किसके लिए इस जहां मे जीयेें ? तुने  क्योंकि  बेवफाई  नम्रता?  किसके लिए .. ?"अपनों के लिए ".खैर अब इन बातों से हमें क्या  लेना -देना  ?लेना देना  है  तो  अपने  सार्थक  सांसो  से ...जो  जीवन  जीने  की कला  सीखा   सके .






     

 

                                

Tuesday, November 8, 2016

जगत का जंजाल - संसृति

         (मनुष्यों को अपने हृदय की सु बुद्धि से दीपशिखा जलाने चाहिए।उन्हे इक दुसरे के मध्य भेदभाव डालकर मौजमस्ती नही करनी चाहिए।मौजमस्ती दो पल की भूल है उनके कुबुद्धि का फल शूल है)   इस प्रकृति के 'विशद -अंक 'मे कलिकाल की  संसृति का "श्री गणेश" होता है जहां सुख आने पर आनंद  सुखित हो जाती है वही दुख आने पर  सुप्त- व्यथा जागृत होती है उसी प्रकृति के विशद अंक मे एक छोटा-सा  गांव है -दामन पुर ।जो चारो ओर नदी यों से घिरा हुआ है।कहीं - कहीं खुले मैदान हैं तो किसानों की चांद तोड़ने जैसी काम भी है।लोग अपनी - अपनी संस्कृति से जुड़ने का प्रयत्न कर रहे है।वहीं पथ के किनारे आम्र - पीपल के द्रुम लगे हुए हैं जिससे शीतल समीर बह रहा है और प्यारे अभिन्न निमग्न हो रहे हैं।वहां के अधिकांश ग्रामीण अल्पज्ञ है ।वे किसी को ठेस लगाकर नही,अपितु खुन -पसीना बहाकर अपना जीविका चलाते है ।वे अपने काम के आगे भगवान को स्मरण करना भूल जाते है परेशानी सहन कर सकते है किन्तु पराजीत नही।

        उसी गांव मे दानिक राम और भोजराम नामक दो भाई निवास करते है।वे भाई तो दोनों एक है परन्तु स्वभाव एक नही पराई चीज़ों पर आंखें गढ़ाना बडे भाई दानि क राम का पेशा है लालच ने उन्हे अंधा बना दिया है मानो कुबेर का धन पाकर भी सन्तोष नही और बगैर सन्तोष के लालच का नाश कहां? हां छोटे भाई भोजराम शील - स्वभाव के है।उन्हे दुनिया की लालच नही है सिर्फ दो बख़्त की रोटी पर भरोसा है वे लक्ष्मण के चरण चिन्ह पर चलने वाले हैं।उनके भीतर बङे भाई के प्रति सेवा व समर्पण के भाव है ।तभी तो वे दानि क राम के हर उड़ती तीर को झेलते रहे पर उन्हे क्या जो राम न होकर एक प्रपंची ठहरे..।

      असल मे दानि क राम अपने आप को छोटे भाई भोजराम की अपेक्षा ज्यादा समृद्ध और सम्पन्न समझते है परन्तु उससे ज्यादा उनका अहंकार है। वे नित्य रामायण का पाठ भी करते है तब भी त्रिशूल के उस महान सिद्धांत को भूल ही जाते है जिसमे लिखा है-सत वचन बोलना चाहिए।सत्य कर्म और सत्य विचार से रहना चाहिए।हां वे इस सिद्धांत को पढते जरूर है किन्तु अपने ।हकीकत कि दुनिया मे नही उतार सकते।वे दुनिया के श्रेष्ठ ग्रंथो में एक  'श्रीराम चरित्र मानस 'मे यह भी पढते है कि "भाई की भुजा भाई  ही होता है।" फिर उसी भाई वैमनस्यता किसलिए?तू- तू ,मैं - मैं क्यों ?

      माना कि दानिक राम के पास वैभव -वस्ती विपुल है पर प्रलय की अपेक्षा जीवन तो विथुर ही है ना फिर ऐसा अहंकार क्यों मानो प्रलय के बाद भी जीवन का नाश नही होगा। दानिक राम के अहंकार रुपी दीमक ने छोटे भाई के प्रेम- भाव रुपी मखमल को चट् लिया है जो यह समझ नही पा रहे हैं कि छोटे भाई भोजराम के झोपड़ी में अपनों का प्यार और दुसरों का आदर भी है।वे गुरुर के आंखों से संसार को देखते है कि मेरे पास क्या नही है? सबकुछ तो है और उसके पास टूटी -फुटी झोपड़ी जिसमें भी खाने -पीने की तेरह -बाईस।वह तो भुख के मार से मारा -मारा फिरता है। सायद बडे भाई दानिक राम को संसार की वास्तविकता का ठीक -ठीक बोध नही है कि इस संसार मे राजाओं का राज हो या धनवानों का धन सब क्षणिक होता है।फिर गर्व किसलिए? 

 वे आधी खोपड़ी के ज़ाहिल व्यक्ति हैं जो साधारण से जिन्दगी को लेकर ऊंच -नीच के कार्य करते हैं कभी किसी कि ज़िल्लत करते हैं तो कभी किसी पर इल्ज़ाम लगाते हैं किन्तु जब इन कर्मो के परिणाम समीप आते हैं तो वे चल नही सकते या जैसे -जैसे उनके जीवन की अंतिम घडी यां आने लगती हैं उनके जीवन के हर कर्म बोलने लगती हैं। 

        दानिक राम के दो पुत्र हैं कार्तिकेश्वर व अचिन्त कुमार ।कार्तिकेश्वर एक शराबी है जबकि अचिन्त कुमार सिविल कोर्ट दामन पुर का मशहूर वकील है उसकी नीति अलग सी है -'वह सत्य का घोर विरोधी है।'उनकी पत्नी अपाहिज है वह पति- प्रपंच के आगे परेशान  है तब भी तन -मन -धन से पति के चरणों मे प्रेम करती है।वह एक धर्म- पत्नी होने के नाते यह जानती है कि दान और तीर्थ से बढकर भी पति की सेवा है। एक दिन अनायास कार्तिकेश्वर शराब के नशे मे मदमस्त होकर अपने काका भोजराम को मारने दौडा.. अब भोजराम क्या करते?वे भागते -भागते पुलिस थाने जा पहुंचे।पुलिस आरक्षक ने देखते ही भोजराम को सलाम किया।क्योंकि वे गांधी टोपी व कुर्ता पहने हुए थे।तत्पश्चात पुलिस ने कार्तिकेश्वर को दो हाथ लगाते हुए कारावास मे डाल दिया।मानों दानिक राम के पहाड़ से अहंकार को एक सबक मिल गया हो।लेकिन फूंक से पहाड़ कहां उड़ने वाला?

        ( कुछ दिनों बाद ) जब वह जेल खाना से बाहर आया तो पुन:वही बर्ताव करने लगा.आखिर कब तक?एक दिन दानि क राम के आंखो से गुरुर का चश्मा उतर गया।अब उनके पास गुरुर के चश्में को पहनने के लिए आंखें नहीं रही ।अचानक वकील अचिन्त कुमार दुनिया से चल बसा! उन्हे जिस धन -दौलत गर्व था उसी धन -दौलत ने उनका साथ छोड दिया।फिर पैसा -पैसा किसलिए?क्या पैसों से यमराज ने वकील  अचिन्त कुमार का जान बख़्शा ?नहीं न।वे कल के कुकर्मो से आने वाले कल को खो दिए।

 जगत के जंजाल मे आकर दानिकराम अपने पुत्र वकील  अचिन्त कुमार को बांध लिए थे किन्तु अपने अहंकार को नही।इस जगत के 'जंजाल' मे आकर अहंकार को नहीं,अपितु उस राम -नाम को भज ना चाहिए जिनका नाम 'अनइच्छित ही अपवर्ग निसेही है।'फिर अहंकार किसलिए? मायाजाल और मोहनी मे फंसने के लिए ।प्रकृति के बिश द अंक मे कलिकाल की संसृति(भव, जन्म - मरण )का जय श्रीराम होता है।

शिवराज आनंद

नाम: शिवराज आनंद (मूल नाम: शिव कुमार साहू) जन्म स्थान: सोनपुर जन्म तिथि: 04 मई 1987 माता-पिता: विश्वनाथ और पार्वती धर्म पत्नी: कृष्णी कुमारी...