Wednesday, November 15, 2017

मानवता के 'डगर' पे

प्यारे  तुम मुझे भी अपना लो ।
ग़ुमराह हूं  कोई राह बता दो।
युं ना छोडो एकाकी अभिमन्यु सा रण पे।
मुझे भी साथले चलो मानवता की डगर पे।।
वहां बडे बडे सतवादी है।
सत्य -अहिंसा केपुजारी हैं।।
वे रावण के  अत्याचार को  मिटा देते हैं।
हो गर हाहाकार तो सिमटा देते है।।
इस पथ मे कोई ज़ंजीर नही
   जो बांधकर जकड़ सके।
पथ मे कोई विध्न नही
   जो रोककर अकड़ सके।।
है ऐ मानवता की डगर निराली।
जीत ले जो प्रेम वही खिलाडी।।
यहां मजहब न भेद-भाव,सर्व धर्म समभाव से जिया ...है।
वक्त आए तो हस के जहर पीया करते है।।
फिर तो स्वर्ग यहीं है नर्क यहीं है।
मानव - मानव ही है,  सोच का फ़र्क है।।
ओ  प्यारे !इस राह से हम न हो किनारे ...
न हताश हो न निराश हो।
मन मे आश व विश्वास हो।।
फिर आओ जग मे जीकर जीवन -ज्योत जला दे।
सुख-शांति के नगर को स्वर्ग सा सजा दे।।
आज भी राम है कण - कण मे
भारत - भारती के जन जन को बता दे।।