Saturday, January 31, 2015

हम कलियुग के प्राणी हैं

सतयुग, त्रेता न द्वापर के हम कलयुग के प्राणी हैं ।
हम सा प्राणी हैं किस युग में, हम अधमदेह धारी हैं।।
हमारा युग तोप-तलवार जन-विद्रोह का है।
सामंजस्य-शांति का नहीं, भेद-संघर्ष का है।।
हमनें सदियों वासुधैव कुटुंबकम् की भावना छोड़ दिया।
और कलि के द्वेष - पाखंड से नाता जोड़ लिया।।
हम काम, क्रोध, लोभ में कुटिल हैं।
पर धन, पर नारी निंदा में लीन हैं।।
हम दुर्गुणों के समुंद्र में कुबुद्धि के कामी में हैं।
सतयुग, त्रेता न द्वापर के हम कलयुग के प्राणी हैं।।
हमारा हस्त खूनी पंजों का,
क्या वे हमसे भिन्न स्वतंत्र रह पाएंगे।
जब सुर सजेगा बम धमाकों का,
मृत उनमृत के लघु गीत गाएंगे।।
हमें तुम्हारे नारद की वीणा अलापते नहीं लगती।
हमें तुम्हारे मोहन की मुरली सुनाई नहीं देती।।
तुम कहते हो हमें अबंधन जीने दो।
अन्न जल सर्व प्रकृत का आनंद रस पीने दो।।
नहीं हम ही इस कलिकाल में सुबुद्धि के प्राणी हैं।
सतयुग त्रेता न द्वापर के हम कलयुग के प्राणी हैं।।
हम कलयुग के प्राणी हैं- शिवराज आनंद